आईएएस बनना देश में सबसे कठिन माना जाता है. इसके लिए मेहनत लगन के साथ सब कुछ त्यागना पड़ता है. वहीं, टॉपर्स के बारे में सामान्य तौर पर कहा जाता है कि ऐसे परिवार से आते है जहां घर का कोई सदस्य प्रशासनिक कार्य में हो या उसका परिवार आर्थिक रूप से सक्षम हो. लेकिन हालिया वर्षों में यह गलत साबित होता दिख रहा है.


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इस अवधारणा को नये पिढ़ी के युवाओं ने गलत साबित कर दिखाया है. कई युवा हैं जिनकी फैमली आर्थिक रूप से कमजोर है और उनके परिवार में कोई भी प्रशासनिक सेवा में नहीं होता है. हालांकि, इस मुकाम को हासिल करने के लिए कठिन रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है. कई बार निराशा हाथ लगती है फिर भी वह अपने मंजिल को हासिल कर हीं लेते हैं.
चौथे प्रयास में 6वीं रैंक


दुकान संभालते थे शुभम
शुभम स्कूल से आने के बाद पिता के जूता का दुकान संभालते थे. हालांकि, पारिवारिक बोझ को कम करने के लिए शुभम के पिता ने एक और दुकान खोली. दोनों दुकान के बीच अधिक दूरी थी. इस वजह से दोनो दुकानों को एक साथ सम्भालना बेहद कठिन काम था. इस वजह से शुभम स्कूल से आने के बाद एक दूकान संभालते थे. दूसरे दुकान की जिम्मेवारी अपने सर ले लिया.
दिन में दुकान रात में पढ़ाई
शुभम माल उतरवाना, ग्राहक संभालना से लेकर हिसाब-किताब देखते थे. शुभम की स्कूली शिक्षा इसी प्रकार से पूरी हुई. इस कारणशुभम को दिन में पढ़ाई के लिए समय नहीं मिल पाता. इस वजह से शुभम प्रतिदिन रात में पढ़ाई करते. शुभम ने 12वीं कक्षा तक इसी प्रकार पढ़ाई की और अच्छे नंबर से पास किया.
ग्रेजुएशन से यूपीएससी की तैयारी
शुभम ने अर्थशास्त्र से स्नातक की उपाधि हासिल की. इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ ईकोनॉमी से मास्टर्स की उपाधि हासिल किया. लेकिन शुभम ने UPSC की तैयारी ग्रेजुएशन से हीं शुरु कर दिया था. पढ़ाई पूरी करते ही शुभम ने वर्ष 2015 में यूपीएससी का परीक्षा दिया परंतु असफल रहे. शुभम को तैयारी पर विश्वास था परंतु परिणाम नहीं आने से वह समझ गए कि यह सरल नहीं है.
असफलता पर असफलता मिला
असफलता से निराश होने के बजाय शुभम दुगने उत्साह के साथ मेहनत की और परीक्षा दिया. उस बार वह सफल रहे और 366वीं रैंक के साथ चयन हो गया. बावजूद इसके शुभम इससे प्रसन्न नहीं थे. शुभम का चयन इंडियन ऑडिट और एकाउंट सर्विस में हुआ जिसमें उनकी रुचि नहीं थी. काम में मन नहीं लगने की वजह से शुभम ने फिर से कठिन परिश्रम कर तीसरे बार में फिर से वर्ष 2017 मे यूपीएससी का इम्तिहान दिया. हालांकि, इस बार निराशा हाथ लगी. उनका कहीं चयन नहीं हुआ.
2018 में बने 6 वां टॉपर
असफलता से घबराने के बजाए शुभम ने शिक्षा को हथियार बनाते हुए 2018 में यूपीएससी का परीक्षा फिर से दिया. इस बार उनका ऑल इंडिया 6वां रहा. असफलता से घबराने के बजाए मेहनत के दम पर सफलता के शिखर को अपने कदमों में झुका दिया. यह उनका चौथा प्रयास था. दरअसल, एक दिन पिता ने कहा कि बेटा कलेक्टर बन जाओ और उन्होंने ठान लिया कि ये ही करके दिखाना है. तमाम मुसीबतों के बावजूद शुभम कलेक्टर बन गए.
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