पटनाः कोरोना संक्रमण काल में सियासी आयोजनों पर लगभग ग्रहण लगा हुआ है. इसका असर बिहार में हर साल मकर संक्रांति के मौके पर होने वाले दही-चूड़ा के सियासी भोज पर पड़ा है. बिहार में सियासी भोज की शुरूआत करने वाले लालू यादव ने विधायकों और पार्टी नेताओं को गरीबों को दही-चूड़ा खिलाने का निर्देश दिया है.


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लालू यादव सीएम रहते हुए एक दिन नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए और अगले दिन झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए भोज का आयोजन करते. लालू अपने आवास से सटे झुग्गियों के लोगों को खुद से परोसकर खिलाते. इसके बाद जदयू में भी इसकी परंपरा शुरू हुई. खासकर, जदयू के पूर्व प्रदेश अद्यक्ष अध्यक्ष वशिष्ठ नारायाण सिंह ने अपने कार्यकाल में इसकी शुरुआत की.
वशिष्ठ नारायण के घर पहुंचते हैं वीआईपी
लालू यादव के बाद बिहार में जदयू सांसद वशिष्ठ नारायण सिंह का दही-चूड़ा का भोज फेमस रहा है. वशिष्ठ नारायण सिंह के आवास पर पार्टी कार्यकर्ता, नेता, मंत्री सीएम नीतीश कुमार से लेकर गठबंधन के अंदर रहने वाले सहयोगी दल के नेता भी दही-चूड़ा और तिलकुट का स्वाद चखने आते रहे हैं. हालांकि, लंबे अरसे के बाद इस बार भोज का आयोजन नहीं किया जा रहा है.


पासवान-रघुवंश की खल रही कमी
लालू यादव और वशिष्ठ नारायण सिंह के अलावा रामविलास पासवान, रघुवंश प्रसाद सिंह जैसे नेताओं ने तो ऐसे आयोजनों को दिल्ली तक इसे पहुंचा दिया. हालांकि, इस बार रामविलास पासवान और रघुवंश प्रसाद सिंह मकर संक्रांति में नहीं हैं. दोनों नेताओं ने पिछले ही साल इस दुनिया को अलविदा कह दिया है.
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बता दें कि बिहार में दही-चूड़ा भोज को महज एक आयोजन नहीं बल्कि आनेवाले दिनों में सियासत किस करवट बैठेगी, इसके संकेत भी दे जाती रही है. साल 2017 में मकर संक्रांति के मौके पर नीतीश कुमार को लालू प्रसाद ने दही का टीका लगाकर जदयू-राजद में सब ठीक होने के संकेत दिये थे. जब दोनों दलों के बीच महागठबंधन में रहते हुए तनातनी चल रही थी. लालू का ये टोटका लंबे समय तक काम नहीं आया और महागठबंधन आखिरकार टूट गया.
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