हस्तकरघा उद्योग के लिए फेमस बिहार के नालंदा जिले के नेपुरा गांव में घर घर में लोकप्रिय बावनबूटी की साड़ी, तसर एवं कॉटन से तैयार की जाती है। अब नालंदा की काफी पुरानी परंपरा बावन बूटी साड़ी को जल्द ही जीआई टैग मिलने की उम्मीद है। नाबार्ड बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग दिलाने के लिए आगे आया है। जीआई टैग मिलने से देश विदेश में बावनबूटी साड़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलेगी, जिससे बुनकरो को सीधा फायदा होगा।
नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक अमृत कुमार बरनवाल ने बताया कि बावनबूटी साड़ी को जीआई टैग दिलाने के लिए प्रक्रिया शुरु कर दी गई है। जीआई टैग से उत्पाद और गुणवत्ता की पहचान होती है।उन्होंने बताया कि बावन बूटी हस्तकला डिजाइन को नाबार्ड के क्षेत्रीय बिहार कार्यालय द्वारा 12 मई को जीआई रजिस्ट्री में आवेदन प्रस्तुत किया गया।
उन्होंने कहा कि नाबार्ड का यह प्रयास रहेगा कि जल्द ही बावन बूटी साड़ी को जीआई टैग मिल जाए। जीआई टैग मिलने से नालंदा के बुनकरों को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी। इसके अलावा जीआई का लोगो भी मिलेगा, जिससे वे अपने उत्पाद को देश विदेश में भेज सकेंगे। जिला विकास प्रबंधक ने बताया कि यहां के बुनकर को उचित दाम नहीं मिल पा रहा था। जी आई टैग मिलने से बुनकर अपने हुनर के बदौलत आत्मनिर्भर बन सकेंगे।
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ऐसे पड़ा बावनबूटी नाम
वहीं यहां के कुछ बुनकरों ने बताया कि नेपुरा की बावनबूटी साड़ी की अलग पहचान है। नेपुरा में बावनबूटी हस्तकला की परंपरा काफी पुरानी है, जिसमें सादे वस्त्र पर हाथों से बुनकर धागे की महीन बूटी डाली जाती है। हर कारीगरी में एक ही बूटी का इस्तेमाल 52 बार किया जाता है। 52 बूटियों के होने के कारण इसको बावनबूटी का नाम दिया गया है।
उन्होंने बताया कि नेपुरा में पहले 70 से 75 घर में हथकरघा का काम होता था, लेकिन बाजार नहीं रहने के कारण अब मात्र 35–40 घर ही बचे हैं, जहां महिलाएं धागे को निकालने का काम एवं पुरुष बुनाई का काम करते हैं।
लुप्त होते जा रही इस परंपरा को जीआई टैग मिलने की उम्मीद से बुनकरों में खुशी का माहौल है। बुनकर जीआई टैग से देश विदेश में गुणवत्ता के साथ अपने उत्पाद एवं जीआई लोगों के साथ बावन बूटी साड़ी देश-विदेश में बेच सकेंगे। बुनकर अपने हुनर की बदौलत आत्मनिर्भर भी बन सकेंगे।