सरपंच के कार्य और अधिकार बिहार : हमारे देश भारतवर्ष को गांवों का देश कहा जाता है है। यहां लगभग साढ़े छह लाख से अधिक गांव हैं। इन गांवों में सरपंच की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। स्थानीय स्वशासन में सरपंच सर्वोच्च ग्राम पंचायत प्रतिनिधि होता है।
कई राज्यों में सरपंच को ग्राम प्रधान, मुखिया, ग्राम सेवक या विलेज़ हेड भी कहते हैं। पंचायती राज प्रणाली में गांवों के विकास में सरपंचों का विशेष योगदान होता है। पंचायती राज अधिनियम-1992 के अनुसार में सरपंच यानी ग्राम प्रधान को कई जिम्मेदारी और अधिकार दिए गए हैं। इस आलेख में हम बात करेंगे सरपंच के अधिकारों व कार्यों के बारे में।
सरपंच की भूमिका : भारत के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक जीवन में काफी पहले से ही पंचायतों की भूमिका को महत्व दिया जाता आ रहा है। ऐसे में स्थानीय लोग अपने सरपंच को काफी ऊंचा दर्जा देते हैं। सरपंच ग्रामसभा द्वारा निर्वाचित ग्राम पंचायत का सर्वोच्च प्रतिनिधि होता है, जिसकी जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों के विकास से जुड़ी होती है।
1992 में संविधान के 73 संशोधन से इसे और मजूबती मिली है। इसके तहत पंचायतों को कई प्रकार के अधिकार दिए गए हैं। केंद्र और राज्य सरकार गांवों के विकास के लिए पंचायत निधि में करोड़ों की धनराशि भी उपलब्ध कराती है।
सरपंच का चुनाव : 1992 के बाद पूरे भारत में प्रत्येक 5 साल में सरपंच का चुनाव (कराया जाता है। ग्राम पंचायतों के मतदाता पंचायती चुनाव के माध्यम से अपने सरपंच को चुनते हैं।
सरपंच का चुनाव राज्य चुनाव आयोग हर 5 साल में करवाता है। यह चुनाव बैलेट पेपर या ईवीएम मशीन द्वारा होता है। आमतौर पर सभी राज्यों में पंचायती चुनाव दलीय आधारित नहीं होता है। इसके लिए चुनाव आयोग अलग से चुनाव चिन्ह आवंटित करती है। हालांकि, कुछ राज्यों में यह दलीय आधार पर भी होते हैं।
सरपंच चुनाव के लिए आरक्षण : जिस तरह से देश के लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में आरक्षण व्यवस्था लागू है, उसी तरह ग्राम पंचायत चुनाव में भी आरक्षण की व्यवस्था है। पंचायती राज्य अधिनियम-1992 में पंचायती चुनाव में महिलाओं को 33 प्रतिशत का आरक्षण दिया गया था, जिसे 2010 में बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया गया है। यानी अब हर दूसरा पद महिलाओं के लिए आरक्षित है। यह व्यवस्था राज्य चुनाव आयोग पंचायत चुनाव से पहले गांव की जनसंख्या के अनुपात और रोस्टर व्यवस्था के आधार पर करती है। जनसंख्या के आधार पर SC/ST/OBC के लिए सीट निर्धारित करती है। जाहिर सी बात है कि गांव में उसी वर्ग का सरपंच बनता है, जिस वर्ग के लिए पंचायत में सीट आरक्षित की गई है। निर्धारित सीट पर उसी वर्ग की महिला या पुरूष सरपंच के लिए उम्मीदवार हो सकते हैं।
सरपंच बनने के लिए योग्यता :
सरपंच बनने के पहली योग्यता है कि उम्मीद्वार उसी ग्राम पंचायत का निवासी हो।
उम्मीद्वार का नाम वोटर लिस्ट में दर्ज हो।
उम्मीद्वार की उम्र 21 साल से कम नहीं होनी चाहिए।
सरपंच बनने के लिए कई राज्यों में 8वीं पास या साक्षर होना जरुरी है, लेकिन यह नियम सभी राज्यों में लागू नहीं है।
किसी-किसी राज्य में 2 बच्चे रखने वाले व्यक्तियों को ही चुनाव लड़ने के लिए योग्य माना गया है।
सरकारी कर्मचारी सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकते हैं।
वह राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानून के अधीन पंचायत का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो।
सरपंच बनने के लिए जरूरी दस्तावेज :
सरपंच बनने से पहले उम्मीदवारों को निम्नलिखित कागजों की जरूरत होती है।
मतदाता पहचान पत्र
आधार कार्ड या पेन कार्ड
निवास प्रमाण पत्र
पासपोर्ट साइज फोटो
पुलिस-प्रशासन द्वारा निर्गत चरित्र प्रमाण पत्र
आरक्षित श्रेणी का जाति प्रमाण पत्र
चल-अचल सम्पति विवरण
अभ्यर्थी के परिवार की आर्थिक स्थिति का विवरण
शैक्षणिक प्रमाण पत्र
50 रुपए के स्टॉम्प पेपर शपथ-पत्र
इसके अलावा भी अन्य प्रमाण पत्र की आवश्यकता हो सकती है, जो पंचायत चुनाव के घोषणा के साथ ही बता दी जाती है। ये दस्तावेज अलग-अलग राज्यों में अलग भी हो सकते है, जिसके लिए आप पंचायत चुनाव के वक्त ब्लॉक/खंड कार्यालय में संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
सरपंच के कार्य :
ग्रामीण सड़कों का रखरखाव
गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करना
सरकारी योजना का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचाना
पशुपालन और बागवानी को बढ़ावा देना
गांव में सिंचाई के साधन की व्यवस्था करना
दाह संस्कार और कब्रिस्तान का रखरखाव करना
प्राथमिक शिक्षा को बढ़ावा देना
खेल का मैदान व खेल को बढ़ावा देना
स्वच्छता अभियान को आगे बढ़ाना
गरीब बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करना
आंगनवाड़ी केंद्र को सुचारु रूप से चलाने में मदद करना।
सरपंच के कार्य और अधिकार :
पंचायती राज प्रणाली में सरपंच को कई कार्य और अधिकार दिए गए है। उसे स्थानीय शासन में कार्यपालिका और न्यायपालिका जैसे कई अधिकार प्राप्त है। गांव में छोटे-मोटे विवादों का निपटारा करना और ग्राम पंचायत के लिए ग्राम स्तर पर कुछ टैक्स लगाने का अधिकार भी सरपंच को दिया गया है। सरंपच ग्रामसभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है। सरपंच प्रतिवर्ष ग्रामसभा की कम से कम 4 बैठकें आयोजित कर सकता है। सरपंच को सभी वर्गों के लोगों, खासकर SC/ST/OBC और महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए।
सरपंच की तनख्वाह :
देशभर में लोकसभा और विधानसभा के प्रतिनिधियों की तरह सैलरी और भत्ता के लिए मांग होती रही है लेकिन कुछ राज्यों में सरपंच की सैलरी तनख्वाह की जगह पर कुछ मानदेय और भत्ता दिया जाती है। पंचायती राज व्यवस्था में अभी तक सरपंचों को किसी प्रकार की सैलरी का प्रावधान नहीं है। बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश जैसे अधिकांश राज्यों में सरपंचो को सैलरी के रुप में 5000 से लेकर 10 हजार रुपए तक मानदेय दिया जाता है।
सरपंच के खिलाफ शिकायत :
पंचायती राज व्यवस्था में पंचायती जनप्रतिनिधियों का आरचण और कार्य सही नहीं होने पर उन्हें हटाने का अधिकार ग्रामीणों को ही दिया गया है, लेकिन इसके लिए कुछ प्रक्रिया और प्रावधान निर्थारित किए गए हैं। यदि सरपंच ठीक से काम नहीं कर रहा है तो इसकी लिखित शिकायत जिला पंचायत राज अधिकारी या संबंधित अधिकारी को दें। लिखित शिकायत में ग्राम पंचायत के आधे से अधिक वार्ड सदस्यों के हस्ताक्षर होना ज़रूरी होता है। अविश्वास पत्र में सभी कारणों का उल्लेख होना चाहिए। इसके बाद जिला पंचायत राज अधिकारी या संबंधित अधिकारी गांव में एक बैठक बुलाता है जिसकी सूचना कम से कम 15 दिन पहले सरपंच और ग्रामीणों को दी जाती है। अविश्वास प्रस्ताव पर सरपंच, ग्रामीण और वार्ड पंच को बहस का मौका दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराया जाता है। यदि दो-तिहाई सदस्य सरपंच के विरोध में वोट करते हैं, तो सरंपच को पद से हटा दिया जाता है। इसके बाद सरपंच का चुनाव होने तक सरपंच की जिम्मेदारी उपसरपंच को दे दी जाती है।