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Bihar News : बिहार में कांग्रेस पार्टी बड़े सियासी संकट से जूझ रही है। बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के पद के लिए ऐसे पात्र की खोज कर रही है, जो पार्टी को वोट दिलाने के साथ-साथ नोट का भी इंतजाम कर दे। लेकिन मुसीबत यह है दोनों खूबियां एक आदमी में नहीं मिलना बहुत ही मुश्किल है। जो लोग वोट जुटाने का दावा करते है वो लोग नोट के मामले में हाथ खड़े कर देते है। इसका नतीजा यह है कि कार्यकाल पूरा होने के बाद भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए नए आदमी की खोज पूरी नहीं हो पा रही है।

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Bihar News : जाती में बंटी है राजनीति

बिहार कि राजनीति जाति में बंटी हुई है, हरे पार्टी के पास एक या उससे ज्यादा जाति का वोट बैंक है। इस मामले में कांग्रेस कभी सबसे ऊपर हुआ करती थी। कांग्रेस के वोट बैंक में ब्राह्म्ण, अनुसूचित जाति और मुसलमान शामिल थे। लेकिन धीरे-धीरे इन तीनों समुदायों ने अलग-अलग दलों से नाता जोड़ लिया। आज कोई ऐसी जाति नहीं है, जिस पर कांग्रेस यह दावा कर सके कि वह उसका वोट बैंक है। कांग्रेस को आज भी अपने कोर वोटरों पर काफी भरोसा है, इसीलिए सवर्ण, अनुसूचित जाति या मुसलमान में से किसी को अध्यक्ष पद के लिए सही माना जाता है।

बिहार में कांग्रेस का महीने का खर्चा लगभग छह लाख रुपये है, जिसमें से ढाई लाख रुपये उसे एआइसीसी से मिलते है। बाकी का जो चार लाख रुपया है उसका इंतेज़ाम प्रदेश अध्यक्ष को करना होता है। अध्यक्ष पद के दावेदारों से यह सवाल पूछा जा रहा है कि महीने के चार लाख रुपये का प्रबंध कैसे किया जायेगा।

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