Sarita Mali : लगन, मेहनत व चाहा हो तो कठिन से कठिन मंजिल तक भी आसानी से पहुंचा जा सकता है। कई लोगों को अपनी मंजिल मिल जाती है, तो कई लोग रास्ते में ही हार मान लेते हैं। ऐसी ही एक कहानी है मुंबई की सरिता माली की, जो कभी अपना परिवार चलाने के लिए पिता के साथ मुंबई की सड़कों पर फूल बेचा करती थी। आज उन्हें अमेरिका के दो-दो बड़े विश्वविद्यालयों से फैलोशिप मिली है।
Sarita Mali : आइए जानते हैं सरिता माली के बारे में।
सरिता माली का जन्म मुंबई के नेताजी नेहरू नगर के घाटकोपर ईस्ट स्थित झुग्गी बस्ती में हुआ था। मिली जानकारी के अनुसार सरिता के परिवार में पिता रामसूरत माली और मां सरोज माली के अलावा दो भाई और एक बहन हैं। केवल पांचवी तक पढ़े सरिता के पिता रामसूरत पैतृक निवास उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के खजूरन गांव में घरों में घूम-घूम कर फूल माला पहुंचाते थे। परिवार बड़ा होने के कारण भरण-पोषण में काफी समस्या आ रही थी, जिसे देखते हुए सरिता के पिता 18 वर्ष की उम्र में रोजगार की तलाश में मुंबई आ गए और कठिन परिश्रम किया।
सरिता ने निगम स्कूल से पढ़ाई की। सरिता उस समय छठी कक्षा में पढ़ती थीं, जब उन्हें पिता के साथ सड़कों पर फूल बेचना पड़ा। एक दिन में मुश्किल से 350 रुपये की कमाई हो पाती। सरिता अपनी पढ़ाई का खर्चा निकालने के लिए बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाती थीं। ट्यूशन के पैसे से उसने केजी सोमैया कालेज आफ आर्ट एंड कामर्स में दाखिला लिया।
सरिता ने साल 2014 में हिंदी साहित्य में ग्रेजुएशन करने के लिए जेएनयू में दाखिला लिया। सरिता बताती हैं कि जेएनयू के शानदार अकादमिक जगत, शिक्षकों और प्रगतिशील छात्र राजनीति ने उन्हें इस देश को सही अर्थो में समझने और उनके अपने समाज को देखने की नई दृष्टि दी है। जेएनयू से ग्रेजुएट होने के बाद उन्होंने यहीं से एमफिल और पीएचडी की।
28 साल की सरिता को यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन ने फेलोशिप ऑफर की है। सरिता ने इनमें से यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया को वरीयता दी है। सरिता ने बताया कि अमेरिका की यूनिवर्सिटी ने उनकी मेरिट और अकादमिक रिकॉर्ड के आधार पर वहां की सबसे प्रतिष्ठित फेलोशिप में से एक ‘चांसलर फेलोशिप’ उन्हें दी है। तो ये थी सरिता माली की मुंबई की बस्तियों से अमेरिका के कैलिफोर्निया तक के सफर की कहानी, जो किसी के लिए भी काफी प्रेरणादायक है।